Add To collaction

आवारा बादल


भाग 11 

बिहारी 

रात भर रवि को नींद नहीं आई । बिहारी और शीला चाची का वह चित्र उसकी आंखों के सामने चलचित्र की भांति सजीव हो उठता । बच्चे लोग जो कहते हैं "गंदी बात" वो क्या यही है ? आखिर कर क्या रहे थे वे दोनों ? अगर वो कुछ गलत नहीं कर रहे थे तो फिर शीला चाची ने उसे बताने से मना क्यों किया ? ना केवल बताने से मना किया अपितु धमकी भी दे डाली । बिहारी भी मौके से क्यों भागा ? इसका मतलब है कि कहीं कुछ गड़बड़ तो है । ऐसी दशा में मां को तो बताना चाहिए या नहीं, इसी उलझन में पड़ा रहा वह । काफी सोच विचार के बाद उसने उस घटना के विषय में मां को बता देना ही ठीक समझा । तब जाकर उसे नींद आई । 

सुबह जब वह जागा तब उसने मां को एक कमरे में बुलाकर उस घटना के बारे में सब कुछ बता दिया । मां ने रवि के पिता को बता दिया । शाम होते होते गांव के गली चौराहों पर , दुकान, मंदिरों में इस घटना पर लोग तरह तरह की बातें करने लगे । 

दोपहर के बाद जब सारी औरतें खाने पीने के काम से फ्री हो जाती हैं और जिनके पास खेत, दुकान का काम नहीं होता है वे गांव के चौराहे पर लगे नीम के पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर बैठकर "हथाई" करने आ जाती हैं । घंटे दो घंटे वहां पर बैठकर दुनिया भर की बातें करती हैं और बाद में चलते चलते कह जाती हैं "ऐ मरन दै दारी, हमकूं कांई लेणो । जो जैसो करैगो सो वैसो भरैगो" और अपनी झोली वहीं फटकार कर चलती बनती हैं । 

आज का टॉपिक बड़ा रंगीन, मसालेदार, जायकेदार, चटपटा, मनपसंद का और कानाफूसी करने वाला था । घीस्या की मां बोली "ऐ संतो की मां । या शीला तो बड़ी तेज तर्रार निकली । 'घर की रोटियों' से पेट नहीं भर रहा था तो 'बाजार में परांठे' खाने चल दी" । 
संतो की मां बोली " क्या करती बेचारी, घर में रोटी नहीं मिलेगी तो बजार से परांठे लाकर पेट तो भरेगी अपना ? कब तक भूखी मरेगी बेचारी ? ये अलग बात है कि उसने परांठे खाने के लिए 'होटल' बड़ा ही घटिया सा चुना । गांव में एक से एक बढिया  'होटल' मौजूद हैं तब उसने ऐसा घटिया सा होटल क्यों चुना" ? इस पर सब औरतें खी खी करके हंसने लगी . 

चिंटू की मम्मी दबी जुबान से बोली "क्या पता उसने सारे 'होटल' छान मारे हों और अंत में उसे बिहारी का 'होटल' ही पसंद आया हो" । उसकी हंसी रुक नहीं रही थी । "क्या पता बड़ी बड़ी होटल 'ऊंची दुकान फीके पकवान' सिद्ध हुई हों और बिहारी का 'ढाबा' माशाल्लाह निकल गया हो । यह तो शीला ही बता सकती है कि उसने बिहारी के ढाबे में ऐसा क्या देखा जो टूट पड़ी थी उस पर" । अब वह खुलकर हंसने लगी थी । 
गांव की सबसे बुजुर्ग महिला सुखिया ताई उन सबकी बातें बड़ी शांति के साथ सुन रही थी । जब उससे रहा नहीं गया तो वह बोली " और कछु काम नाय का तमन पे । लग रही हैं बाकी खिल्ली उड़ाबा में । ऊ बेचारी करै तो का करै ?  खसम कूं तो नोट छापवा सूं फुरसत कोनी । तौ ऊ बेचारी अपने पेट के नीचे की आग तो बुझावैगी न कहीं पै" ? 

सुखिया ताई की बात सोलह आने सही थी । जब घर पर कुछ खाने को नहीं मिलता हो तो बाहर का खाना खाना ही पड़ेगा । सुखिया ताई की बात को काटने की हिम्मत किसी में नहीं थी इसलिए किसी ने भी उस बात का प्रतिवाद नहीं किया । आज की चर्चा अधूरी ही रही । शायद वे पूरी करना भी नहीं चाहती थीं । इतना बढिया विषय फिर मिल सकता है क्या । पुरुष हो या स्त्री, ये एक ऐसा विषय है जिसका कोई अंत नहीं है ।  इसलिए कल फिर मिलकर "शीला पुराण" का पाठ करने की घोषणा करके "महिला मंडल" वहां से विदा हो गया । 

देर रात तक तो यह बात बच्चे बच्चे की जुबां पर आ गई थी । एक दो लोगों ने रवि से पूछा भी था कि क्या बात थी ? मगर रवि ने यह कह कर कि "वह वहां पर था ही नहीं इसलिएउसे कुछ पता नहीं है" अपना पिंड छुड़ा लिया । इस तरह रात बीत गयी । 

दूसरे दिन जंगल में आग की तरह यह बात पूरे गांव में फैल गई कि बिहारी को पुलिस उठाकर ले गई है । सब लोग सन्न रह गये थे इस समाचार से । सब लोगों की जुबां से एक ही बात निकल रही थी " ई कांई होयो"। 

सरपंच साहब थाने पहुंचे । थाने में उन्होंने खूब कहा कि "बिहारी ऐसा आदमी नहीं है , वह ऐसा काम नहीं कर सकता है ।  वह बरसों से हमारे यहां काम कर रहा है पर किसी ने भी ऐसी कोई शिकायत कभी नहीं की है । जो भी घटना घटी वह रजामंदी से थी , बलात्कार नहीं । इसलिए बिहारी निर्दोष है उसे छोड़ दिया जाये" । 
"आपके कहने से बिहारी निर्दोष साबित नहीं हो जायेगा । कोर्ट ही तय करेगी कि उसने बलात्कार किया था या नहीं । हमारे पास तो नामजद FIR है इसलिए बिहारी को गिरफ्तार कर लिया गया है । इसकी जमानत भी कोर्ट से ही होगी । हम इसकी जांच करेंगे। मौका मुआयना करेंगे फिर उस औरत को कोर्ट में पेश करेंगे । उसके सी आर पी सी की धारा 164 के तहत बयान करवायेंगे । उसका मेडीकल टेस्ट भी होगा । मौका मुआयना भी होगा ।  उसके बाद ही जमानत पर निर्णय करेगी कोर्ट । तब तक हम कुछ नहीं कर सकते हैं । अब आप यहां से जाइये और.हमें हमारा काम करने दीजिए" । थानेदार ने कड़क कर कहा ।

सरपंच साहब मुंह लटका कर वापस आ गये । पूरे गांव में हो हल्ला हो गया । सब लोग बिहारी को दुष्ट, शैतान, राक्षस और न जाने क्या क्या कहने लगे । जो औरतें कल हथाई में शीला के कारनामे जीभ चटकार कर सुना रही थीं आज उसे बेचारी बताने लगी थीं । लोग किस तरह पाला बदल लेते हैं एक पल में । शायद इतनी जल्दी तो किस्मत भी पाला नहीं बदलती है । पूरे गांव में बिहारी की थू थू होने लगी । 

शीला को कोर्ट में पेश किया गया । उसने वही बयान दिया जो उसने FIR में लिखाया था कि वह अपने खेत में काम कर रही थी । अचानक वहां बिहारी आया और उसने उसे पीछे से पकड़ कर नीचे पटक दिया । शीला ने उसका बहुत विरोध किया मगर उसके सामने उसकी एक भी ना चली । वह बहुत रोई चिल्लाई और गिड़गिड़ाई भी मगर उस हैवान ने उसकी इज्ज़त लूट ली । फिर वह भाग गया । इस घटना के बाद उस दिन तो वह अपने होशोहवास में ही नहीं थी । जब वह होश में आई तब उसने थाने में रपट दर्ज कराई थी । 

धारा 164 के बयानों के बाद बिहारी की जमानत के सारे रास्ते बंद हो गए थे । गांव वालों ने सरपंच को भी कह दिया कि यह पूरे गांव की इज्ज़त का मामला है इसलिए अच्छा होगा कि वह इस मामले से दूर ही रहें । अगर उसने बिहारी की जमानत करवाने की कोशिश की तो अगली बार कोई दूसरा सरपंच चुनना पड़ेगा । 

एक नेता के लिए इससे बड़ी धमकी और क्या हो सकती है कि उसे चुनावों में मजा चखा दिया जायेगा अगर उसने ऐसा कुछ किया तो ? इस चक्कर में लोग रेल रोकते हैं, सड़कें जाम कर देते हैं, सरकारी संपत्ति को नष्ट कर देते हैं । आगजनी करते हैं मगर नेता लोग या तो इस पर मौन रहते हैं या फिर दंगाइयों के पक्ष में ही बोलते हैं । यदि पुलिस कोई कार्यवाही करती है तो वे पुलिस पर सवाल उठाते हैं न कि दंगाइयों और अराजक तत्वों पर । नेता को वोट चाहिए और वह वोट के लिए कुछ भी कर सकता है । देश तोड़ सकता है । देश को गिरवी भी रख सकता है । उसका दीन ईमान केवल सत्ता है और कुछ नहीं । देश समाज जाये भाड़ में । इससे उन्हें क्या लेना देना ? सरपंच खामोश बैठ गया । बिहारी का और कोई यहां था नहीं इसलिए उसकी जमानत कौन करवाये ? 

पुलिस ने कोर्ट में बिहारी के खिलाफ आरोप पत्र  पेश कर दिया । कोर्ट में सालों साल लग जाते हैं फैसला होने में । तब तक कोई निरपराध व्यक्ति सलाखों के पीछे रहे तो इससे ना तो पुलिस को कोई फर्क पड़ता है और ना ही कोर्ट को । जिसे फर्क पड़ता है उसकी सुनने वाला कोई नहीं है । इसलिए बिहारी को जेल में सड़ना ही पड़ेगा । यही इंसाफ है आज का । इसलिए समझदार लोग औरतों से दूर दूर ही रहते हैं । आजकल हनी ट्रैप के कितने मामले हो रहे हैं फिर भी पुरुष सौन्दर्य के भंवर में घिर ही जाते हैं । 

रवि को आज वह पुरानी घटना याद हो आई । इस घटना से उसे लगने लगा कि जब उस जमाने में मीडिया नहीं था तब भी बिहारी को निरपराध होते हुये बीस साल जेल में सड़ना पड़ा तो आज तो मीडिया इतना हावी है कि वह खुद ही न्यायाधीश बन गया है और खुद ही हर किसी को बलात्कारी, दैत्य, नरपिशाच, दुर्दांत अपराधी घोषित कर देता है । मीडिया ट्रायल से ही हर किसी को अपराधी सिद्ध कर दिया जाता है । कोर्ट भी मीडिया ट्रायल से प्रभावित होती हैं । ऐसे में कौन सी कोर्ट इंसाफ करेगी ? हां , यदि आतंकवादी का कोई नामी गिरामी वकील हो तो वह रात के बारह बजे भी कोर्ट खुलवाने की ताकत रखता है । एक आम आदमी के लिए ना तो सरकार बनी हैं और ना ही कोर्ट।  प्रेम और बिहारी जैसों के लिए तो जेल ही जगह है । 

शे

   8
1 Comments

Chetna swrnkar

30-Jul-2022 10:48 PM

Bahut achhi rachana

Reply